दोस्तों एक सवाल : क्या किसी मस्जिद का पेश इमाम किसी महन्त जी को बनाया जा सकता है ? क्या किसी मौलवी साहब को मंदिर का पुजारी बनiया जासकता ...
दोस्तों एक सवाल :
क्या किसी मस्जिद का पेश इमाम किसी महन्त जी को बनाया जा सकता है ?
क्या किसी मौलवी साहब को मंदिर का पुजारी बनiया जासकता है ?
तो शायद आपका जवाब होगा बिकुल नहीं, और यह जवाब सही भी है की मस्जिद के पेश इमाम मौलवी साहब और मंदिर के पुजारी महन्त जी ही होसकते है I
तो सवाल ये पैदा होता है की फिर हुसैनाबाद जो की एक मुस्लिम (शिया) धार्मिक संस्था है उसकी ज़िम्मेदारी गैर मुस्लिम (शिया) को कियूँ ? क्या जिला प्रशाशन इसका जवाब देगा ? क्या शिया समाज में प्रशासनिक स्तर का कोई अधिकारी सरकार में नहीं है की जिसको हुसैनाबाद ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी दी जासके ? अगर नहीं है तो फिर ये एक सवालिया निशान है इस देश की संप्रभुता पर और सरकार को प्राथमिकता के आधार पर शिया समाज को आरक्षण देने में प्राथमिकता देनी चाहिए I
आज उसी हुसैनाबाद ट्रस्ट का इंतज़ाम गैर मुस्लिम (शिया) समाज के लोगों के हाथों में है जिसके कारण इस साल हुसैनबाद और शिया समाज के मसले को लेकर जो रस्साकशी चल रही है वो किसी से छुपी नहीं है, और इसके नतीजे में जिला प्रशासन ने इस साल रोज़दारों को भेजी जाने वाली आफ्तारी जो हुसैनाबाद ट्रस्ट के पैसों और आमदनी से होती थी उसको बंद कर दिया है , इसको जिला प्रशासन की हिटलरशाही न कहा जाये तो क्या कहा जाये , पिछले 4-5 साल पहले लगभग ओ.पी. पाठक साहब के वक़्त में हुसैनाबाद ट्रस्ट की आफ्तारी का बजट लगभग 14 लाख पास हुआ जो लगातार चला आरहा है जो इस साल पास होने के बावजूद खर्च न होसका, तो अब सवाल ये की उस पैसे का क्या होगा क्या हुसैनाबाद रोज़दारों की आफ्तारी का पैसा किसी और जगह / मद में खर्च करेगा ? तो मेरा सुझाओ है हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधिकारीयों को की इन पैसों को वो हुसैनाबाद ट्रस्ट के कर्मचारियों को ईद की सौगात के रूप में देदें जिससे उनकी इस साल ईद सही से मन जाये ई
(शाहकार ज़ैदी)
क्या किसी मस्जिद का पेश इमाम किसी महन्त जी को बनाया जा सकता है ?
क्या किसी मौलवी साहब को मंदिर का पुजारी बनiया जासकता है ?
तो शायद आपका जवाब होगा बिकुल नहीं, और यह जवाब सही भी है की मस्जिद के पेश इमाम मौलवी साहब और मंदिर के पुजारी महन्त जी ही होसकते है I
तो सवाल ये पैदा होता है की फिर हुसैनाबाद जो की एक मुस्लिम (शिया) धार्मिक संस्था है उसकी ज़िम्मेदारी गैर मुस्लिम (शिया) को कियूँ ? क्या जिला प्रशाशन इसका जवाब देगा ? क्या शिया समाज में प्रशासनिक स्तर का कोई अधिकारी सरकार में नहीं है की जिसको हुसैनाबाद ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी दी जासके ? अगर नहीं है तो फिर ये एक सवालिया निशान है इस देश की संप्रभुता पर और सरकार को प्राथमिकता के आधार पर शिया समाज को आरक्षण देने में प्राथमिकता देनी चाहिए I
आज उसी हुसैनाबाद ट्रस्ट का इंतज़ाम गैर मुस्लिम (शिया) समाज के लोगों के हाथों में है जिसके कारण इस साल हुसैनबाद और शिया समाज के मसले को लेकर जो रस्साकशी चल रही है वो किसी से छुपी नहीं है, और इसके नतीजे में जिला प्रशासन ने इस साल रोज़दारों को भेजी जाने वाली आफ्तारी जो हुसैनाबाद ट्रस्ट के पैसों और आमदनी से होती थी उसको बंद कर दिया है , इसको जिला प्रशासन की हिटलरशाही न कहा जाये तो क्या कहा जाये , पिछले 4-5 साल पहले लगभग ओ.पी. पाठक साहब के वक़्त में हुसैनाबाद ट्रस्ट की आफ्तारी का बजट लगभग 14 लाख पास हुआ जो लगातार चला आरहा है जो इस साल पास होने के बावजूद खर्च न होसका, तो अब सवाल ये की उस पैसे का क्या होगा क्या हुसैनाबाद रोज़दारों की आफ्तारी का पैसा किसी और जगह / मद में खर्च करेगा ? तो मेरा सुझाओ है हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधिकारीयों को की इन पैसों को वो हुसैनाबाद ट्रस्ट के कर्मचारियों को ईद की सौगात के रूप में देदें जिससे उनकी इस साल ईद सही से मन जाये ई
(शाहकार ज़ैदी)
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